बड़ी याद आती हैं

Former Assistant professor
R.j
Writer/poet/ travelogue writer
मुझे अपने बचपन की वह नदियां बड़ी याद आती है।
जब उतर जाते थे पानी में नंगे पैर
बिना इस डर के कि कहीं कोई कांच का टुकड़ा आपके पैर को चीर देगा।
जब नदी-नालों से बदबू नहीं आती थी ,
लोगों के घरों के आंगन भी उनके दिल जितने बड़े होते थे।
जब हम घर का आधा कूड़ा पौधों में इस्तेमाल कर लेते थे।
मुझे याद आता है बचपन का वह चौबारा
जहां खेलते खेलते सुबह से शाम हो जाती थी।
और मजे की बात होमवर्क तब भी पूरा रहता था।
जब छतों से छतो तक हंसी के ठहाके और मुस्कुराहटों के जुगनू खिलते थे।
जब मां की कहानियां थपकी देकर सुलाती थी।
मुझे याद आती है बचपन की वो बारिशे
जब जानबूझकर छाता भूल जाते थे,
और भोले चेहरे बनाकर भीगने का मजा लेते थे।
मुझे याद आता है ऐसा बहुत कुछ,
जो अब भी है, पर नहीं है।
जो होकर भी कहीं नहीं है,
मुझे अपने बचपन की वह नदियां बड़ी याद आती है।।
मीनू “मन”