जीवन की डगर पर कुछ लोग यूँ भी मिलते हैं
जो हमारे उजाले से घबराते हैं, हमें अंधेरों में गिराना चाहते हैं…

✍🏻 रचनाकार – वैभव अग्रवाल (B.Tech, M.Tech)
तुम जलन बरक़रार रखना, हम जलवे बरक़रार रखेंगे,
तुम नफ़रत का हर दाँव चलाना, हम मोहब्बत की जीत तयशुदा रखेंगे।
तुम साज़िश के सौ तीर चलाना, हम हिम्मत की दीवार रखेंगे,
तुम गिराने की कोशिश करना, हम शान को बेक़रार रखेंगे।
तुम अंधेरों से डराते रहना, हम रोशनी के पहरेदार रखेंगे,
तुम कितनी भी दुश्मनी करना, हम दोस्ती के अख़्तियार रखेंगे।
तुम जलन बरक़रार रखना, हम जलवे बरक़रार रखेंगे,
तुम जितना हमें रोकना चाहोगे, हम उतनी ही रफ़्तार रखेंगे।
तुम अफ़वाहों का ज़हर घोलना, हम सच्चाई का अमृत बरसाएँगे,
तुम टूटे सपनों से डराना, हम नए ख्वाब सजाएँगे।
तुम काँटे बिछाते रहना, हम फूलों की बहार सजाएँगे,
तुम नफ़रत का मौसम लाना, हम मोहब्बत का त्योहार मनाएँगे।
तुम चाहे जितनी दीवारें खड़ी करो, हम पुल बनाते जाएँगे,
तुम चाहे राहें बंद करो, हम नई मंज़िलें पाते जाएँगे।
तुम चाहे लाख ताने दो, हम मुस्कानों से जवाब देंगे,
तुम पत्थर फेंकते रहना, हम फूलों का इनाम देंगे।
तुम ज़हर की नदियाँ बहाना, हम अमृत का दरिया बनाएँगे,
तुम राख में सपने जलाना, हम उजालों के दीप जलाएँगे।
तुम जलन बरक़रार रखना, हम जलवे बरक़रार रखेंगे,
तुम मिटाने की साज़िश करना, हम इतिहास में नाम अमर रखेंगे।