हिंदी कविता

लेखिका आरती पंवार

मैं हिन्दी हूं

अधूरा है सनातन धर्म मेरे बिना
धर्म पूरा करती एक हिस्सा हूं मैं,
मीरा की वीणा में भी मैं हूं,
कबीर के दोहों में भी मैं हूं,
तुम भूल पाओगे कैसे मुझे,
तुम्हारे लहू के हर एक कतरे में मैं हूं,
मैं हिंदी हूँ l

गीता के सार में भी मैं हूं
रहिमन के भावार्थ में भी मैं हूं,
तुलसी की रामचरित्र भी मैं हूं,
भर दे जो तुम्हारे हर अंग में प्रेम भाव
रसों का वो श्रृंगार रस भी मैं हूं,
मैं हिंदी हूँ l

राष्ट्रगीत के तान में भी मैं हूं
राष्ट्रगान के गान में भी मैं हूं,
कश्मीर से कन्याकुमारी की जुबां भी मैं हूं,
भुला पाओगे कैसे मुझे तुम,
देश की हर एक फिजा में मैं हूं,
मैं हिन्दी हूँ l

अनेकता में एकता की शान भी मैं हूँ,
हिंदुस्तान के हर पन्ने का गुणगान भी मैं हूँ,
पुकारे जिसे मां कह कर वो स्वाभिमान भी मैं हूं,
जो सजा दे तुम्हारे हर अंग को वीरता के रंग से,
वो केसरिया रंग हिंदुस्तान भी मैं हूँ,

मैं हिंदी हूँ l Disclaimer:The Poets’ Column

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